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मुझे भूलना नहीं ....

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टेढ़ी मेढ़ी  कच्ची पगडंडियां से नीचे उतरते ही ,   आँखों से ओझल होते जाते हैं खेत,खलिहान , और डामर वाली पक्की चौड़ी सड़क , ले जाती है गाँव से दूर मुझे शहरों की ओर, बेहतर जीवन की लालसा में  पर जिंदगी की जद्दोजहद के बीच  , अक्सर पुकारता है  गाँव मेरा , 'मुझे भूलना नहीं ' याद दिलाता हुआ सा ..... गाँव के सिराहने सिराहने जंगल की हरीतिमा , बाखलियों  से नीचे  नदी तक  ढलानों में  खेत  , आढू खुमानी से लदे हुए पेड़ , छतों मैं फैली कद्दू ककड़ियों की बेल , चीड़ देवदार और बांज के  जंगल  , अक्सर याद आते हैं मुझे, तिमील, बुरांस और काफल ...... घाघरे और चोली में रंग बिरंगी गोट , कमर में बंधा हुआ धोती का फेंटा, माथे में पिठियाँ अक्षत, गले मैं  गुलुबन्द ,     बांज और गाज्यो  काटती , गीतों की धुन से जंगल गुंजाती , अक्सर याद आती हैं मुझे  आमा ,काकी, जड़जा और बोजी ...... भट का जौला ,लहसुन हरी धनिया का नमक, घौत की दाल और भांग की चटनी , गडेरी की सब्जी,लायी का टपकिया, आलू के गुटके , ककड़ी का रायता, सना हुआ नींबू ,  ऊखल कुटे चावलों का भात , अक