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अभिनंदन नव वर्ष ....

अपनी बंद रहस्यमयी पंखुड़ियों को खोल,  एक बार फिर खिलने को है नववर्ष का फ़ूल ।     एक बार फिर उगेंगे कल्पनाओं के पंख,      एक बार फिर सजेंगे नव संकल्पों के दीप।  पतझड़ के पीले पत्तों से झड़ जायेंगे सारे दुःख , नयी कोपलों सी फिर जन्म लेगी आशाएं ।     सतरंगी पंखुड़ियों में खो जायेगें गम के आंसू,   ओस की बूदों सी चमकेंगी मुसकानें नयी उमंगो की।  चलो भर कर मन में फिर एक विश्वास नया, करें अभिनन्दन नव वर्ष के चढते सूरज का । स्नेह और आत्मियता बरसेगी पुरानी रंजिशों को भूल,                         एक बार फिर खिलने को है नववर्ष का फूल।                            ममता            ------------ * --- *------------

मुझे भूलना नहीं ....

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टेढ़ी मेढ़ी  कच्ची पगडंडियां से नीचे उतरते ही ,   आँखों से ओझल होते जाते हैं खेत,खलिहान , और डामर वाली पक्की चौड़ी सड़क , ले जाती है गाँव से दूर मुझे शहरों की ओर, बेहतर जीवन की लालसा में  पर जिंदगी की जद्दोजहद के बीच  , अक्सर पुकारता है  गाँव मेरा , 'मुझे भूलना नहीं ' याद दिलाता हुआ सा ..... गाँव के सिराहने सिराहने जंगल की हरीतिमा , बाखलियों  से नीचे  नदी तक  ढलानों में  खेत  , आढू खुमानी से लदे हुए पेड़ , छतों मैं फैली कद्दू ककड़ियों की बेल , चीड़ देवदार और बांज के  जंगल  , अक्सर याद आते हैं मुझे, तिमील, बुरांस और काफल ...... घाघरे और चोली में रंग बिरंगी गोट , कमर में बंधा हुआ धोती का फेंटा, माथे में पिठियाँ अक्षत, गले मैं  गुलुबन्द ,     बांज और गाज्यो  काटती , गीतों की धुन से जंगल गुंजाती , अक्सर याद आती हैं मुझे  आमा ,काकी, जड़जा और बोजी ...... भट का जौला ,लहसुन हरी धनिया का नमक, घौत की दाल और भांग की चटनी , गडेरी की सब्जी,लायी का टपकिया, आलू के गुटके , ककड़ी का रायता, सना हुआ नींबू ,  ऊखल कुटे चावलों का भात , अक

पहाड़ी औरत .............

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उम्मीदों का थामे हाथ , सुबह घर से निकलती हूँ .... लकड़ी चुनती,  चारा ,पानी ढोती , दिन भर दुर्गम चट्टानों से  लडती हूँ .... बुवाई करती ,कटाई करती , अपने श्रमगीतों से बियावान पहाड़ों को जगातीं हूँ .... गुनगुनाती हुयी कोई पहाड़ी गीत , डूबते सूरज के साथ  थकी सी  लौट आती हूँ .... इसी तरह पता नहीं कब होती है सुबह ,                                                                           कब ढल जाती है शाम.... रात फिर कराती है , मुझे मेरे होने का अहसास.... फिर भर जाती  हूँ ऊर्जा से, एक नए दिन का सामना करने के लिए .... फिर हो जाती हूँ  तैयार, अपने अलावा सभी के लिए जीने को.... सदियों से चलता आ रहा है, मेरा ये  नियमित और बेरहम जीवनचक्र .... उम्मीद में एक खुशनुमा सवेरे की, हं सते-हंसते  सारे दुख सह  लेती हूँ .... और एक दिन 'मेरा वक़्त भी बदलेगा'  सुख की ये आस लिए बेवक्त चली जाती हूँ ..      ...............................................................     ममता